Rice Exports India : भारतीय चावल निर्यात में इस सीजन आई बड़ी गिरावट | क्या भारत को नहीं मिल रहे चावल के ऑर्डर ?

Rice Exports India : किसान और व्यापारी भाइयो चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष बीवी कृष्ण राव के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों (अप्रैल और मई) में भारत के चावल निर्यात में भारी गिरावट देखी गई है, जो लगभग 60 प्रतिशत कम रहा है। इसका मुख्य कारण वैश्विक बाजार में सुस्त मांग और कई वर्षों के निचले स्तर पर बनी कीमतें हैं। दरअसल, पिछले साल सितंबर में भारत द्वारा निर्यात प्रतिबंध हटाने के बाद चावल की भारी खरीद हुई थी, जिसके चलते 2024 की अंतिम तिमाही और 2025 की पहली तिमाही में बहुत अधिक स्टॉक जमा हो गया।

कीमतों में इतनी गिरावट आई है कि वे खरीद मूल्य से भी नीचे आ गई हैं। नई दिल्ली के व्यापार विश्लेषक एस चंद्रशेखरन बताते हैं कि भारत में रिकॉर्ड उत्पादन और भारी स्टॉक के कारण वैश्विक कीमतें कम हैं, जिससे मांग से अधिक आपूर्ति के चलते वैश्विक बाजार पर दबाव बढ़ रहा है। जनवरी में तो स्थिति ऐसी हो गई थी कि बंदरगाहों पर माल उतारने की जगह भी नहीं थी और समुद्र में जहाजों की कतार लगी थी।

विदेशों में कैसी है भारतीय चावल की मांग Rice Exports India

चावल के निर्यात में कमी आ रही है, और इसके पीछे मुख्य कारण विदेशों में घटती मांग है। आंकड़ों को देखें तो, उबले चावल का निर्यात, जो सितंबर 2024 में 4.35 लाख टन था, अक्टूबर में बढ़कर 11.35 लाख टन हो गया और जनवरी 2025 तक 12.52 लाख टन तक पहुंच गया। लेकिन, उसके बाद इसमें भारी गिरावट आई और अप्रैल में यह 7.92 लाख टन और मई में सिर्फ 2.07 लाख टन रह गया। सफेद (कच्चे) चावल के साथ भी ऐसा ही हुआ। सितंबर में सिर्फ 30,000 टन निर्यात होने के बाद, अक्टूबर 2024 में यह 6.91 लाख टन तक पहुंच गया और नवंबर में 8.07 लाख टन हो गया।

हालाँकि, दिसंबर से इसमें भी गिरावट आनी शुरू हो गई और मई 2025 में यह 2.92 लाख टन पर आ गया। कुल मिलाकर, हमारा चावल निर्यात जो पहले हर महीने 13 लाख टन से ज़्यादा था, अब 5 लाख टन से भी कम हो गया है। चंद्रशेखरन का कहना है कि भारत आमतौर पर सालाना 16-17 मिलियन टन चावल निर्यात करता है, जिसका मतलब है कि हर महीने करीब 1.31 मिलियन टन निर्यात होता है। यह मौजूदा गिरावट बहुत बड़ी है। नई दिल्ली के निर्यातक राजेश जैन पहाड़िया ने बताया कि वैश्विक बाजार में चावल की अधिक आपूर्ति होने के कारण इस समय मंदी का माहौल है।

क्या भारत को नहीं मिल रहे चावल के ऑर्डर

राजथी समूह के निदेशक एम मदन प्रकाश, जो कृषि उत्पादों का निर्यात करते हैं, का कहना है कि अब शायद ही कोई नया ऑर्डर आ रहा है, जिससे पता चलता है कि मांग पूरी तरह से खत्म हो गई है। चंद्रशेखरन ने इस बात पर जोर दिया कि मांग में यह कमी वैश्विक स्तर पर महसूस की जा रही है, क्योंकि भारत जहां निर्यात में गिरावट की रिपोर्ट कर रहा है, वहीं अन्य देश अपने निर्यात में कोई खास वृद्धि नहीं दिखा रहे हैं। गौरतलब है कि 2022 और 2023 में भारत ने चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी, क्योंकि गेहूं का उत्पादन कम होने के कारण सरकार को चिंता थी कि चावल की आपूर्ति अपर्याप्त हो सकती है और इसकी मांग बढ़ सकती है। हालांकि, 2024 की दूसरी छमाही से चावल के स्टॉक में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप Rice Exports India पर लगे प्रतिबंध हटा दिए, जिसमें 100 प्रतिशत टूटे चावल पर लगा प्रतिबंध भी शामिल था।

भारतीय चावल बाजार की कैसी है स्थिति

पहले इजराइल-ईरान तनाव के कारण वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता थी, लेकिन अब हालात सुधरने लगे हैं। निर्यातक माल खरीदने में पहले से ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं, क्योंकि शिपमेंट और समुद्री रास्ते से माल की आवाजाही फिर से शुरू हो गई है। हालांकि, कुछ रास्ते अभी भी बंद होने की खबरें हैं। चावल निर्यातकों और स्टॉकिस्टों की बढ़ती मांग से चावल मिलों और मंडियों में सभी तरह के बारीक चावल की कीमतें गिरने से रुक गई हैं। चावल मिलों ने भी भविष्य के लिए चावल की कीमतों में बढ़ोतरी कर कारोबार किया है। पिछले तीन दिनों की मंदी में स्टॉक का माल बिक जाने से बाजार में हाजिर माल की कमी हो गई है।

गौरतलब है कि 3250-3300 रुपये प्रति क्विंटल में बिकने वाले 1509 धान से बने सेला चावल की लागत 6300-6400 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है, लेकिन बाजार में यह अभी भी 5950-6000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा है। और बात करे 1718 सेला चावल की तो 14 से 15 दिन पहले चावल की कीमते 7000 से 7100 तक पहुंच गई थी लेकिन 19 जून 2025 को 1718 सेला चावल की कीमते 6300 से 6400 तक चल रही है यानि के इन मांग 14 से 15 दिनों में 600 से 700 तक गिर चुकी है बात करे आगे की तो मांग अभी धीरे धीरे सुधार होता जा रहा है क्योकि 2 दिन पहले इसकी कीमते 6100 तक पहुंच गई थी | मौजूदा स्थितियों को देखते हुए अगर इजराइल-ईरान के तनाव में कोई बड़ा मोड़ नहीं आता है तो बाजार में धीरे धीरे तेजी देखने को मिल सकती है बाकि व्यापारी अपने विवेक से करे

वियतनाम ने 2025 के पहले पाँच महीनों में करीब 4.5 मिलियन टन चावल का किया निर्यात

किसान और व्यापारी भाइयो कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, वियतनाम ने 2025 के पहले पाँच महीनों में करीब 4.5 मिलियन टन (या 4.5 बिलियन किलोग्राम) चावल का निर्यात किया, जिससे लगभग 2.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व मिला। पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में निर्यात की गई मात्रा में 12.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि निर्यात मूल्य में 8.9 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह एक बड़ा विरोधाभास है, जिसका मुख्य कारण चावल के औसत निर्यात मूल्य में भारी कमी है। यह घटकर लगभग 0.516 डॉलर प्रति किलोग्राम रह गया है, जो पिछले साल के मुकाबले 18.7 प्रतिशत कम है।

हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिलीपींस अभी भी वियतनाम का सबसे बड़ा चावल खरीदार बना हुआ है, जो उनके कुल चावल निर्यात का 41.4% हिस्सा है। इसके बाद आइवरी कोस्ट 11.9% और चीन 10.3% के साथ आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि फिलीपींस ने भले ही बड़ी मात्रा में चावल खरीदा हो, लेकिन पिछले चार महीनों में उन्हें हुए निर्यात के मूल्य में 21.8% की गिरावट आई है। वहीं, आइवरी कोस्ट को चावल का निर्यात 2.7 गुना बढ़ गया है, और चीन को भेजे जाने वाले चावल में भी 83.7% की बढ़ोतरी हुई है। बांग्लादेश में सबसे ज़बरदस्त उछाल देखा गया, जहाँ निर्यात मूल्य में 515.6 गुना की भारी वृद्धि हुई, जबकि इंडोनेशिया को किए गए निर्यात में 97.9% की तेज़ी से गिरावट आई।

मेकांग डेल्टा में धान की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। विन्ह लॉन्ग और तियान गियांग जैसे इलाकों में आईआर 50404 धान का व्यापार अच्छे से चल रहा है, और जैस्मिन चावल की मांग भी बनी हुई है। एसटी 25 अभी भी सबसे महंगी किस्मों में से एक है। एन गियांग प्रांत में व्यापारी अपनी जरूरत पूरी करने के लिए ताज़ा आईआर 50404 धान खरीद रहे हैं। फिलीपींस अब कई देशों से चावल खरीदना चाह रहा है, जिससे वियतनाम के चावल निर्यात को थोड़ी चुनौती मिल सकती है। हालांकि, वियतनाम अब जापान और यूरोप जैसे बड़े बाजारों पर ध्यान दे रहा है, जहां प्रीमियम चावल के अच्छे दाम मिलते हैं, जैसा कि हो ची मिन्ह सिटी के एक व्यापारी ने बताया।

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