किसान और व्यापारी भाइयो मई 2025 में भारत के गैर-बासमती चावल निर्यात में लगातार चौथे महीने गिरावट देखने को मिली है। इसकी मुख्य वजह अफ्रीकी देशों से मांग में कमी बताई जा रही है। निर्यातकों के अनुसार, इन देशों में चावल का अतिरिक्त स्टॉक होने के कारण उन्होंने अपनी खरीद कम कर दी है। इसके बावजूद, वित्तीय वर्ष 2025 में भारत ने कुल 20.1 लाख टन चावल का निर्यात करके एक बार फिर दुनिया के सबसे बड़े चावल निर्यातक का खिताब हासिल किया है।
अफ्रीकी मांग में आई कमी
भारत के गैर-बासमती चावल का बड़ा हिस्सा, करीब 73%, अफ्रीकी देशों को बेचा जाता है। वित्तीय वर्ष 2025 में, भारत ने लगभग 9-9.5 मिलियन टन उसना चावल (parboiled rice) और 4 लाख टन कच्चे चावल का निर्यात किया। हालांकि, मई 2025 में उसना चावल का निर्यात काफी घट गया, यह 207,634 टन रहा, जो अक्टूबर 2024 के मुकाबले 82% कम था। इस उसना चावल का औसत निर्यात मूल्य $455.6 प्रति टन रहा। वहीं, कच्चे चावल का निर्यात भी 691,365 टन से घटकर 292,984 टन पर आ गया। अफ्रीका के देशों के पास चावल का स्टॉक बढ़ने से भी भारत के गैर-बासमती चावल की मांग में कमी आई है।
भू-राजनीतिक तनाव का प्रभाव
CRISIL की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के बासमती चावल निर्यात का लगभग 14% हिस्सा ईरान और इज़राइल को जाता है। हाल ही में इन दोनों देशों के बीच हुए संघर्ष से भारत के बासमती और गैर-बासमती चावल की आपूर्ति श्रृंखला पर काफी असर पड़ा है, जिससे निर्यात में बड़ी रुकावट आई है। हालांकि, भारत प्रतिस्पर्धी कीमतों और मजबूत आपूर्ति के कारण गैर-बासमती चावल निर्यात में हमेशा आगे रहा है। सितंबर 2024 में निर्यात प्रतिबंध हटने से बढ़ोतरी देखने को मिली थी, लेकिन अफ्रीकी देशों में स्टॉक भरने के कारण इस पर असर पड़ा। फिर भी, व्यापारियों को उम्मीद है कि भारत की बेहतरीन गुणवत्ता वाले चावल की मांग फिर से बढ़ेगी। विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत को अब दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। सरकार भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सब्सिडी जैसी योजनाओं से किसानों को प्रोत्साहित कर रही है ताकि उत्पादन और निर्यात स्थिर बना रहे। बाकि व्यापार अपने विवेक से करे